Written by Sachin Korla
"माँ, तूने तो कहा था इंसान बहुत अच्छे हैं।
फिर इन्होंने हम दोनों को इतनी बेदर्द मौत क्यों दी-एक हाथी के बच्चे की पुकार जो अभी बाहरी दुनिया में आया भी नही था।"
"माँ! माँ! मैं कब आउंगी बाहर की दुनिया में?
कब देख पाउंगी अपनी आंखों से तुझे?
माँ, तू कहती है ना इंसान इस दुनिया के राजा हैं तो मैं उन्हें कब देख पाउंगी?
माँ! बताओ ना!!"
बेटा! थोड़ा सब्र कर, थोड़ा ठहर जा।
जल्द ही इस दुनिया में तेरे कदम होंगे।
मेरे जिगर के टुकड़े तू जल्द ही मेरी आंखों के सामने होगी।
हाँ और तुझे मैं जल्द ही अच्छे इंसानो से मिलवाऊंगी वो तुम्हे प्यार करेंगे, तुम्हारी भूख मिटायेंगे!
माँ, तूने दो दिन से कुछ नही खाया है।
इसी वजह से मुझे भी कुछ खाने को नही मिला।
और अब मुझे बहुत जोर से भूख लगी है।
माँ तू कह रही थी ना, इंसान अच्छे होते हैं वो हमे खाना भी देते हैं।
तो माँ जाओ ना उनके पास और जो देंगे वो खा लो ना।
अच्छा बाबा!! चलो इंसानो की बस्ती में चलते
और कुछ खाने को ढूंढते है।
"--- यह बातचीत एक हथनी और उसके बच्चे के बीच की है, वो बच्चा जो अभी इस दुनिया में आया तक नही था। खाने की तलाश में हथनी निकल पड़ती है इंसानो की बस्ती की और बड़ी उम्मीदें लेकर।
चलिए फिर क्या हुआ देखते हैं-
बेटा! बेटा! सुन रही हो ना मुझे? मैं पहुंच गयी हुन इंसानो की बस्ती में,
अब चलो खाना ढूंढती हूँ।
माँ! माँ! इंसान मिले तुम्हे क्या या अभी हमारे सामने दिख रहे हैं?
नही बेटा! आजकल इंसान अपने घरों से बहुत कम निकलते है,
वो बेचारे महामारी की मार झेल रहें है, इसी कारण डरें हैं सहमे है।
मेरी प्राथनाएं भगवान से यही हैं की वो इंसानो की पीड़ा हर लें और दुनिया को इस महामारी से मुक्ति दें।
हां माँ! मैं भी भगवान से प्राथना करूँगी की मैं जब आऊं दुनिया में तबतक सबकुछ ठीक हो जाए और ताकि मैं जल्दी-जल्दी इंसानो को देख पाऊँ।
बेटा, अब ज्यादा देर भूखे नही रहेंगे हम!
इंसान हमारे खाने के लिए अनानास रख गए हैं।
माँ, तू सच्ची कहती है इंसान बहुत अच्छे होते है।
पर माँ मुझे कुछ अच्छा नही लग रहा,
कुछ अनजाना-सा डर लग रहा है।
अरे बेटा। कुछ नही होगा अब तो खाना भी मिल गया।
हम दोनो की भूख अब मिट जायगी।
इंसानो पर मुझे भरोशा है, अच्छा खाना देते हैं।
माँ! माँ! माँ! कहाँ हो तुम?
क्या हो रहा है?
मुझे इतनी जलन क्यों महसूस हो रही?
माँ मेरा दम क्यों घुट रहा है?
माँ, ठीक हो ना तुम?
हहहहह हहहहह हहहहहहह!!!!!
बेटा! बेटा! मेरा मुँह बहुत जल रहा है।
मुझसे सहा नही जा रहा।
तू घबरा मत, मैं हूं ना।
तुझे कुछ नही होने दूंगी।
मैं तालाब की तरफ भाग रही हूं।
ताकि इस मुँह में लगी आग से बच् सकूँ।
माँ! माँ! यह कैसे हुआ?
क्या था उस अनानास में?
तेरा मुँह कैसे जला?
इंसानो ने क्या किया था उसमे?
बेटा! मैं गलत थी,
तुमसे झूठ बोला,
हर इंसान अच्छा नही होता।
बेटा यह इंसानी दुनिया हम जीवों जीने नही देगी।
माँ!! सुन रही हो ना!
तुम इस क्यों कह रही हो।
और मुझे सांस कम आ रही है माँ!
माँ, मुझे घुटन हो रही है!
माँ कहाँ हो तुम?
माँ? माँ? माँ?
माँ, तुझे क्या हो गया?
तू मुझसे अब बात क्यों नही कर रही?
क्या मैं, अब कभी बाहर नही आ पाउंगी?
क्या मैं अब कभी तुझे देख नही पाउंगी?
क्या इंसानो को भी नही देख पाउंगी?
माँ! माँ! बोलो ना कुछ।
मुझे सांस नही आ रही।
माँ....... माँ......म...मम............
------"अब हाथी के बच्चे को उसकी माँ कभी जवाब नही दे पायगी न ही वो मासूम बेचारी जवाब कर पायगी"
मैं किसी मनघड़न्त कहानी नही कह रहा बल्कि यह इंसानियत पर कलंक लगाने वाली घटना, भारत के सबसे पढ़े लिखे राज्य के साक्षर लोगों ने की है या यूँ कहुँ की पढ़े लिखे जाहिल गवारों ने की है।
आखिर उस मासूम से जीव की गलती क्या थी,
यही की वो कुछ मतलबी इंसानो की बस्ती में आश लेकर आई थी?
अखित मिल क्या गया उन लोगों को यह करके,
कम से कम उन्हें एक बार यह भी ख्याल नही आया होगा की वो अकेली नही उसकी एक औलाद भी है जिसे बाहर की दुनिया का इंतज़ार है?
क्यों इतने भूले-बिसरे फिर रहे हैं लोग,
समझ नही आये इतना क्यों गिर रहें हैं लोग।
सोचा था 2020 इंसानो को सबक सिखाएगा,
उनका प्रकृति के प्रति ममतव्य बढ़ाएगा।
पर कुछ इंसानो ने भी यह सिद्ध कर दिया की एक कुत्ते की दुम टेढ़ी कभी सीधी नही हो सकती।
कब समझेंगे ऐसे लोग या यूँ कहूँ की धरती के बोझ।
किस बात का गुरूर है,
देख नही रहे छोटा सा कीटाणु कितने कर रहे इसको चूर हैं।
यह एक साथ कोरोना, साइक्लोन, टिड्डी दल, भूकंप यह सब प्रकति का हम पर गुस्सा है,
या शायद हम पर आने वाली किसी और बड़ी विपदा का हिस्सा है।
वक्त रहते हमे समझना होगा की इस धरती पर इंसानो का भी उतना ही हक़ है जितना की और जीव जंतुओं का।
Thank-you Family💟💫